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अनित्य भावना:- विद्युत लक्ष्मी प्रभुता पतंग, आयुष्य ते तो जलना तरंग। पुरंदरी चाप अनंगरंग, शुं राचिये त्यां क्षणना प्रसंग ।। अहो भव्य! भिखारी के स्वप्न की तरह संसार का सुख अनित्य है। जैसे उस भिखारी ने स्वप्न में सुख – समूह को देखा और आनंद माना, इसी तरह पामर प्राणी संसार – स्वप्न के सुख- समूह में आनंद मानते हैं। जैसे वह सुख जगाने पर मिथ्या मालूम हुआ, उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होने पर संसार के सुख मिथ्या मालूम होते हैं। स्वप्न के भोगों को न भोगने पर जैसे भिखारी को खेद की प्राप्ति हुई, वैसे ही मोहान्ध प्राणी संसार में सुख मान बैठते हैं, और उसे भोगे हुए के समान गिनते हैं। परंतु परिणाम में वे खेद, दुर्गति, और पश्चाताप ही प्राप्त करते हैं। भोगों के चपल और विनाशीक होने के कारण स्वप्न के खेद के समान उनका परिणाम होता है। इसके ऊपर से बुद्धिमान पुरुष आत्म – हित को खोजते हैं।
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Bol