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पैसा रहना या नहीं रहना वह अपने हाथ की बात नहीं है। जब पुण्य पलटता है तब दुकान जल जाती है, बीमा कम्पनी टूट जाती है, पुत्री विधवा हो जाती है, गड़ा हुआ धन कोयला हो जाता है आदि सब सुविधाएँ एकसाथ पलट जाती है। कोई कहे कि ऐसा तो कभी–कभी होता है न? अरे! पुण्य पलटे तो सर्व प्रसंग पलटने में देर नहीं लगती। परद्रव्य को कैसे रहना वह तेरे हाथ की बात ही नहीं है न। इसलिये सदा-स्थायी सुखनिधान निज आत्मा की पहिचान करके उसमें स्थिर हो जा ॥२३॥
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Bol