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Title

Anyatva Bhavana

अन्यत्व भावना:- एक राजन जिनके सिरपर प्रभुता का तेजस्वी व प्रकाशमान मुकुट सुशोभित था। उनके साधन सामग्री, दल का, नगर का, वैभव का, विलास का, संसार में किसी भी प्रकार के न्यूनभाव न था। ऐसे राजन अपने सुंदर आदर्श भवन में वस्त्राभूषणों से विभूषित होकर मनोहर सिंहासन पर बैठे थे। उनके हाथ की एक अंगुली में से अंगूठी निकल पड़ी। राजन का ध्यान उस ओर आकर्षित होने पर उन्हें अपनी अंगुली बिलकुल शोभाहीन मालूम होने लगी। राजन गम्भीर होकर सोचने लगे और उन्होंने दूसरी अंगूठी निकाल ली ऐसे उन्होंने दशों अंगुलियाँ खाली कर डाली। अंगुलियाँ शोभाहीन दिखाई देने लगी। इनके शोभाहीन मालूम होने से राजन अन्यत्व भावना में गद्गद् होकर बोले, कैसी विचित्रता है? यह अलंकार, रंगबिरंगे वस्त्र आदि से तो यह शरीर शोभित होता है। किसी और चीज से रमणीयता धारण करनेवाले शरीर को मैं कैसे अपना मानूँ। ऐसा भाव तो केवल दुखप्रद और वृथा है। मेरी आत्मा का इस शरीर से कभी न कभी वियोग होनेवाला है और यह तो केवल अन्यत्व भावना को ही धारण किये हुए है उसमें ममत्व क्यों रखना चाहिए? यह पुत्र, वैभव आदि के सुख का मुझे कुछ भी अनुराग नहीं है। राजन के अन्तः करण में वैराग्य का ऐसा प्रकाश पड़ा कि उनका तिमिर-पट दूर हो गया। उन्हें अनुपम कांतिमान ध्यान प्रकट हुआ। उसी समय उन्होंने पंचमुष्ठी केशलोंच किया। महावीतरागी सर्वज्ञ सर्वदर्शी होकर वे निराकार परमात्मा हो गये।

Series

Barah Bhavana

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

30-Nov-2016

Bol

5