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Title

Bhojankhand me Bharat

Emperor Bharat had given up the attachment to his home before renouncing it. After he had offered a portion of his food to Jain monks, the radiance of his body left everyone in awe. He was handsome not just by physical appearance but also by inner virtues. He was strong, not just in body but also in spirit. He was wise not only through external knowledge but also through self-knowledge. When he and his queens sat down for lunch in the dining hall, it seemed like the sun illuminated the room with all its brilliance. His queens were lovely and graceful, like Rati (a celestial goddess), and even the goddesses of heaven seemed like maids compared to them. He and his wives consumed pure water and food at an appropriate time daily.

He lovingly invited everyone for lunch, and as all the queens took their respective seats, they patiently awaited for their lord to begin eating. As soon as he started his meal, his queens, too, would begin eating. Everyone was happy after observing this scene. Indeed, the behavior of an enlightened person vastly differs from that of the world.

भोजनखण्ड में भरत – जिन्होंने घर से पहले घर के मोह को ही त्याग दिया ऐसे भरत जब अपने लिये बनाये हुए आहार में से मुनिराजों को आहार कराकर वापिस लौटते तो उनके शरीर का तेज सबको अपनी आभा से लज्जित करता था, वे अत्यन्त रूपवान थे परन्तु मात्र शरीर से नही, अन्तर के गुणों से भी। वे बलशाली थे परन्तु मात्र देह से नही, आत्मबल से भी। वे बुद्धिमान थे परन्तु मात्र बाह्य ज्ञान से ही नही अपितु आत्मज्ञान से भी। ऐसे भरत जब भोजनखण्ड में अपनी रानियों के साथ भोजन करने बैठते तब मानो ऐसा लगता कि सूर्य अपनी समस्त किरणों के साथ प्रकाशित हो रहा हो। वे रानियाँ अत्यन्त रूपवान और रति के समान सुशोभित हो रही थी, उनके समक्ष स्वर्ग की देवियाँ भी दासी के समान प्रतीत होती थी। ऐसी स्त्रियों के स्वामी सम्राट भरत अपनी सह-धर्मिणियों के साथ प्रतिदिन योग्य समय में शुद्ध जल-भोजन ग्रहण करते थे। भरत प्रेमपूर्वक सबको निमंत्रण देते हुए पुकारते और सभी रानियाँ अपना स्थान ग्रहण कर स्वामी के भोजन करने की प्रतीक्षा करती, जब सम्राट भोजन प्रारंभ करते तत्पश्चात सभी रानियाँ भी भोजन प्रारंभ करती और यह दृश्य देख सभी जन अत्यंत हर्षित हुआ करते। सच में! ज्ञानियों की प्रवृत्ति जग में रहते हुए भी जग से अत्यन्त भिन्न ही होती है।

Series

Bharatesh Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Landscape

Completion Year

01-Jan-2023