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Title

Mantri Mantrana

Both in the material and spiritual world, it is a firmly established truth that one should only react once one knows the entire truth and prevailing circumstances. However, due to ignorance and biased perception, people entangle their well-wishers in the web of their misconceptions. Similar was the case with Emperor Bharata and King Bāhubalī. They could not understand each other’s state of mind. Consequently, the two brothers, sons of the same father, stood before each other on the battlefield. The scriptures sometimes refer to such a state of mind as Vyabhichāriṇī, a gross means of gaining wealth and physical splendour. After destroying mutual affection, both the brothers were now ready for battle. Yet, they did not fear the disastrous consequences of their grand war. Their wise ministers and priests, concerned about the outcomes of such a war, met and tried to find a solution.

Their advisors believed that although everyone had tried to counsel Bāhubalī, his obstinacy prevailed. Hence, a battle was inevitable. Common sense dictated that a battle between a Chakravarti and Kāmadēva would not be ordinary. Everyone was aware that neither would surrender to the other nor would Bāhubalī be able to defeat Emperor Bharata. And what weapons will both brothers use in the battle? With weapons made of flowers or iron? Flower weapons would be useless here; they would undoubtedly fight with iron weapons. Both were Charam shariri (final embodied incarnation) and Vajrakaya (possessing a superior body of extraordinary strength); hence, it would be impossible for them to harm each other. Nevertheless, just as when two mountains collide, the objects caught in between are destroyed; similarly, in the battle of these mighty individuals, the entire army on both sides would be annihilated. Therefore, wisdom indicated that the battle should be limited to mutual combat without the army's involvement. In any case, involving the army in the battle would provide no benefit. Hence, all ministers and priests collectively decided to request Emperor Bharata and Bāhubalī to engage in a limited Dharma yuddha (righteous battle). They all proceeded to meet both Emperor Bharata and King Bāhubalī with this intention.

मन्त्री मन्त्रणा – लौकिक और पारमार्थिक, दोनो ही जीवन में एक सत्य पूर्ण रूप से स्थापित है कि जब तक पूर्ण सत्य एवं परिस्थितियों का ज्ञान ना हो, उसपर प्रतिक्रिया नही करना तथापि अज्ञानता और अशुद्धता के वश जीव अपने स्नेही एवं हितकारी जनों को भी अपने भ्रम की परिधि में शामिल कर लेता है। ऐसी ही परिस्थिति भरत-बाहुबली की थी। भरत, बाहुबली के अन्तर्मन को नही समझ पा रहे थे और बाहुबली, भरत के अन्तर्मन को और इसी ऊहापोह का परिणाम था कि एक ही पिता की संताने ऐसी वस्तु के खातिर युद्ध स्थल में एक-दूसरे के सामने आ खडी थी जिसे शास्त्रों में कहीं-कहीं व्यभिचारिणी की भी संज्ञा दी है अर्थात लक्ष्मी व जड वैभव। ये दोनों भाई तो एक-दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह की हत्या कर युद्ध के लिये सज्ज हो चुके थे परन्तु इनके महायुद्ध के विनाशकारी परिणामों का भय इन्हें नही था। इसकी चिंता इन दोनों राजाओं के बुद्धिमान मन्त्रियों और पुरोहितों को हुई तब वे आपस में मिले और इसका उपाय खोजने का प्रयत्न करने लगे। उनका कहना था कि बाहुबली को सभी ने समझाया परन्तु वे अपनी हठ पर अडे हैं अतः युद्ध तो होगा ही और साधारण सी बात है कि जब चक्रवर्ती और कामदेव का युद्ध होगा तो यह कोई सामान्य युद्ध नही होगा। ये एक दूसरे के प्रति झुकेंगे तो है नही और बाहुबली चक्रवर्ती को परास्त कभी कर नही पायेंगें, यह बात भी सभी समझते हैं। परन्तु ये दोनो भाई कैसे युद्ध करेंगे? कुसुमास्त्र से या लोहास्त्र से? कुसुमास्त्र का तो यहाँ कोई लाभ नही, जाहिर सी बात है कि युद्ध लोहास्त्र से ही होगा और भरत-बाहुबली तो चरम शरीरी एवं वज्रकाय हैं, इनके साथ कुछ होना तो असंभव है। परन्तु दों पर्वतों के घर्षण से जिसप्रकार बीच में आये पदार्थ नष्ट हो जाते हैं उसीप्रकार इन महाबलियों के युद्ध में सम्पूर्ण सेना का ही विध्वंस हो जायेगा। अतः बुद्धिमत्ता इसी में है कि युद्ध परस्पर हो, जिसमें सेना का प्रयोग ना किया जाये क्योंकि व्यर्थ में सेना को युद्ध में शामिल करने से कोई लाभ नही है। इसलिये सभी मन्त्रियों एवं पुरोहितों ने निर्णय किया कि भरत-बाहुबली से धर्मयुद्ध की प्रार्थना कर जय-पराजय का निर्णय होने हेतु निवेदन किया जाये और इसी उद्देश्य से वे सभी भरत-बाहुबली से भेंट करने पधारे।

Series

Bharatesh Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Landscape

Completion Year

01-Jan-2023