Title
एकानतवास
अभवच्चित्तविक्षेप एकान्ते तत्त्वसंस्थितः ।
अभ्यस्येदभियोगेन योगी तत्त्वं निजात्मनः ॥३६॥
क्षोभ रहित एकान्तमें, तत्त्वज्ञान चित धाय।
सावधान हो संयमी, निज स्वरूप को भाय ॥३६॥
अर्थः जिन्हें संसार का यथार्थ स्वरूप प्रतिभासित हो गया वे क्षुभित नही होते, जिन्होंने हेय-उपादेय तत्त्वों की सच्ची समझ प्राप्त कर ली है तथा गुरुओं के उपदेश से जिनकी बुद्धि निश्चल हो गयी है तथा जिनके ज्ञान में शुद्धात्मा का अवलोकन हो गया है; ऐसे संयमी ज्ञानी जनों को तो आत्मध्यान के लियी एकान्त स्थान जैसे शून्यग्रह, वृक्षों की कोटर व पर्वतों की गुफायें ही प्रिय है।
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Gatha