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Title

Ishtopdesh Gatha 13

हर स्थिति में धन दुःखकर

दुरर्ज्येनासुरक्ष्येण नश्वरेण धनादिना ।

स्वस्थंमन्यो जनः कोऽपि ज्वरवानिव सर्पिषा ॥ १३ ॥

कठिन प्राप्त संरक्ष्य ये, नश्वर धन पुत्रादि।

इनसे सुखकी कल्पना, जिमि घृत से ज्वर व्याधि ॥१३॥

अर्थः साधारण सी बात है, यदि कोई जीव सामज्वर (ठंड देकर आने वाले बुखार) से पीडित है और वह बुद्धि का ठिकाना ना रहने से घी इत्यादि पीकर या उसकी मालिश से सोचे कि अब तो “मैं स्वस्थ हूँ” तो जगत उसे मूर्ख ही कहेगा। क्योंकि भले ही जगत में घी पौष्टिक आहार है परन्तु ज्वर में घी भी हानिकारक है।

उसी प्रकार ये जीव अत्यंत कठिनाई से उत्पन्न होने वाले धन-सम्पदा व स्त्री आदिक भोग एकत्रित करता है; ऐसे भोग जो मुश्किलों से पैदा किये जाते हैं तथा जिनकी रक्षा बड़ी कठनाई से होती है, तथा जिनकी रक्षा करने पर भी जो नष्ट हो जाते हैं, स्थिर नहीं रहते, ऐसे धनादिकों से दुःख ही होता है।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

13