Title
तस्वीर खींची जाती है वहाँ जैसे चेहरे के भाव होते हैं तदनुसार स्वयमेव कागज पर चित्रित हो जाते हैं, कोई चित्रण करने नहीं जाता। उसीप्रकार कर्मके उदयरूप चित्रकारी सामने आये तब समझना कि मैंने जैसे भाव किये थे वैसा ही यह चित्रण हुआ है। यद्यपि आत्मा कर्म में प्रवेश करके कुछ करता नहीं है, तथापि भाव के अनुरूप ही चित्रण स्वयं हो जाता है। अब दर्शनरूप, ज्ञानरूप, चारित्ररूप परिणमन कर तो संवर – निर्जरा होगी। आत्मा का मूल स्वभाव दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप है, उसका अवलम्बन करने पर द्रव्य में जो (शक्तिरूप से) विद्यमान है वह (व्यक्तिरूप से) प्रगट होगा।
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Bol