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जैसे मिट्टी का ढक्कन, घड़ा, झारी इत्यादि पर्यायों से अनुभव करने पर अन्यत्व भूतार्थ है – सत्यार्थ है, तथापि सर्वतः अस्खलित ( सर्व पर्याय भेदों से किंचित मात्र भी भेदरूप न होनेवाले ऐसे ) एक मिट्टी के स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अन्यत्व अभूतार्थ है – असत्यार्थ है।
इसीप्रकार आत्मा का नारक – आदि पर्यायों से अनुभव करने पर ( पर्यायों के अन्य-अन्य रूप से ) अन्यत्व भूतार्थ है – सत्यार्थ है, तथापि सर्वतः अस्खलित ( सर्व पर्याय भेदों से किंचित मात्र भेदरूप न होनेवाले ) एक चैतन्याकार आत्मस्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अन्यत्व अभूतार्थ है – असत्यार्थ है।
(गाथा 14 टीका)
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