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जैसे जल का, अग्नि जिसका निमित्त है – ऐसी उष्णता के साथ संयुक्ततारूप – तप्ततारूप – अवस्था से अनुभव करने पर (जल की) उष्णता रूप संयुक्तता भूतार्थ है – सत्यार्थ है; तथापि एकान्त शीतलता रूप जल-स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर ( उष्णता के साथ ) संयुक्तता अभूतार्थ है – असत्यार्थ है ।
इसीप्रकार आत्मा का, कर्म जिसका निमित्त है – ऐसे मोह के साथ संयुक्ततारूप अवस्था से अनुभव करने पर संयुक्तता भूतार्थ है – सत्यार्थ है; तथापि जो स्वयं एकान्त बोधरूप (ज्ञानरूप) है, ऐसे जीव-स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर संयुक्तता अभूतार्थ है – असत्यार्थ है।
(गाथा 14 टीका)
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