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Title

Samaysaar - Gatha No. 96

जैसे अपरीक्षक आचार्य के उपदेश से भैंसे का ध्यान करता हुआ कोई भोला पुरूष अज्ञान के कारण भैंसे को और अपने को एक करता हुआ, “ मैं गगनस्पर्शी सींगो का बड़ा भैंसा हूँ” ऐसे अध्यास के कारण मनुष्योचित मकान के द्वार में से बाहर निकलने से च्युत होता हुआ उसप्रकार के भाव का कर्ता प्रतिभासित होता है ।

इसीप्रकार यह आत्मा भी अज्ञान के कारण ज्ञेय-ज्ञायक रूप पर को एक करता हुआ, “मैं परद्रव्य हूँ” ऐसे अध्यास के कारण मन के विषयभूत किये गये धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और अन्य जीव के द्वारा (अपनी) शुद्ध चैतन्य धातु रूकी होने से तथा इन्द्रियों के विषयरूप में किये गये रूपी पदार्थों के द्वारा (अपना) केवल बोध (ज्ञान) ढँका हुआ होने से और मृतक शरीर के द्वारा परम् अमृतरूप विज्ञानघन (स्वयं) मूर्छित हुआ होने से उसप्रकार के भाव का कर्ता प्रतिभासित होता है।

(गाथा 96 टीका)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Portrait

Completion Year

01-Jul-2018

Gatha

96