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जैसे सोने की बेड़ी भी पुरुष को बांधती है और लोहे की बेड़ी भी बांधती है। सोने की और लोहे की बेड़ी बिना किसी अंतर के पुरूष को बांधती है, क्योंकि बन्धनभाव की अपेक्षा से उनमें कोई अंतर नहीं है।
इसीप्रकार शुभ तथा अशुभ किया हुआ कर्म जीव को (अविशेषतया) बांधता है। शुभ और अशुभ कर्म बिना किसी भी अंतर के पुरुष को (जीव को) बाँधते हैं, क्योंकि बन्ध-भाव की अपेक्षा से उनमें कोई अंतर नहीं है।
(गाथा 146 टीका)
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Gatha