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Title

Samaysaar - Gatha No. 148

जैसे हाथी को पकड़ने के लिए हथिनी रखी जाती है, हाथी कामान्ध होता हुआ उस हथिनिरूपी कुट्टनी के साथ राग तथा संसर्ग करता है, इसलिए वह पकड़ा जाता है और पराधीन होकर दुःख भोगता है । जो हाथी चतुर होता है, वह अपने बन्धन के लिए निकट आती हुई मनोरम अथवा अमनोरम हथिनिरूपी कुट्टनी को परमार्थतः बुरी जानकर उस हथिनी के साथ राग तथा संसर्ग नहीं करता।

इसीप्रकार अज्ञानी जीव कर्मप्रकृति को अच्छा समझकर उसके साथ राग तथा संसर्ग करते हैं, इसलिए वे बन्ध में पड़कर पराधीन बनकर संसार के दुःख भोगते हैं और जो ज्ञानी होता है, वह अपने बन्ध के लिए उदय में आती हुई शुभ या अशुभ सभी कर्म-प्रकृतियों को परमार्थतः बुरी जानकर उसके साथ कभी-भी राग तथा संसर्ग नहीं करता।

(गाथा 148 टीका)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Portrait

Completion Year

01-Jul-2018

Gatha

148