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जैसे प्रचण्ड अग्नि के द्वारा तप्त होता हुआ सुवर्ण सुवर्णत्व को नहीं छोड़ता।
उसीप्रकार प्रचंड कर्मोदय के द्वारा घिरा हुआ होने पर भी (विघ्न किया जाये तो भी) ज्ञान ज्ञानत्व को नहीं छोड़ता, क्योंकि हजारों कारणों के एकत्रित होने पर भी स्वभाव छोड़ना अशक्य है, उसे छोड़ देने पर स्वभाव-मात्र वस्तु का ही उच्छेद हो जायेगा, और वस्तु का उच्छेद तो होता नहीं है, क्योंकि सत का नाश होना असम्भव है।
(गाथा 184 टीका)
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