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मुनि चक्री शक्री के हिय में, जिस अनन्त का ध्यान रहे।
गाते वेद पुराण जिसे वह, परम देव मम हृदय रहे॥१२॥
परमपूज्य मुनिराज, चक्रवर्ती, इन्द्र आदि के मन में भी जिस अनन्त वैभव सम्पन्न परमदेव / निज शुद्धात्मा का ध्यान रहता है ; वेद-पुराण आदि चार अनुयोगमयी समग्र जिनवाणी जिसका सदा यशोगान करती है, वह परमदेव निजशुद्धात्मा मेरे हृदय में भी सदा विद्यमान रहे। १२
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Shlok