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Title

Bhavna Battisi - Shlok no.18

कर्मकलंक अछूत न जिसका, कभी छू सके दिव्यप्रकाश।

मोह-तिमिर को भेद चला जो, परम शरण मुझको वह आप्त॥१८॥

कर्मकलंक जिसका कभी स्पर्श भी नहीं कर सकता है, वास्तव में तो यह दिव्य प्रकाश भी जिसका स्पर्श नहीं कर सकता है / जो पर्यायमात्र से अप्रभावित है, जिसने मोह रूपी अन्धकार का पूर्णतया भेदन कर दिया है, वह देव ही मुझे परमशरणभूत है। १८

Series

Bhavna Battisi

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

24" x 36"

Orientation

Portrait

Completion Year

31-Dec-2021

Shlok

18