Title
जैसे अग्नि जलाती तरु को, तैसे नष्ट हुए स्वयमेव।
भय-विषाद-चिन्ता सब जिसके, परम शरण मुझको वह देव॥२१॥
जैसे अग्नि सहज ही वृक्ष को जला डालती है; उसीप्रकार जिसके भय, विषाद, चिन्ता आदि सभी विकार स्वयं ही नष्ट हो गए हैं, वह देव ही मुझे परम शरणभूत है। २१
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Shlok