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UTTAM ARJAV DHARMA: Supreme Rectitude: Rectitude is the best sign of virtue. It is best described as simplicity. Righteousness in mind, thought and action is a sign of rectitude. Deceit is the root cause of all perversion, which destroys faith and love. All falsehoods, deception, hatefulness, treachery are dormant in it. Lacking virtue and finding illusory success elusive, the baneful are trapped in an endless cycle of delusion. Only through austerity and simplicity can one attain love and faith. This is true in this world as well as in the sacred realm as the Lord of heavens; he is respected by celestial being. Thus, rectitude virtue only benefits one.
उत्तम आर्जव धर्म: धर्म का श्रेष्ठ लक्षण आर्जव है। आर्जव का अर्थ सरलता है। मन-वचन-काय की कुटिलता का अभाव वह आर्जव है। कपट सभी अनर्थों का मूल है ; प्रीति तथा प्रतीति का नाश करने वाला है। कपटी में असत्य, छल,निर्दयता, विश्वासघात आदि सभी दोष रहते हैं। कपटी में गुण नहीं किन्तु समस्त दोष रहते हैं। मायाचारी यहाँ अपयश को पाकर फिर नरक-तिर्यंचादि गतियों में असंख्यातकाल तक परिभ्रमण करता है।मायाचार रहित आर्जवधर्म के धारक में सभी गुण रहते हैं।समस्त लोक की प्रीति तथा प्रतीति का पात्र होता है। परलोक में देवों द्वारा इंद्र-प्रतीन्द्र आदि होता है।अतः सरल परिणाम ही आत्मा का है।
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Bol