Bhartesh Vaibhav Art Book Published on New art series.
20-Jan-2024
भरतेश वैभव
भव-भव में ही भटकते, बीते काल अनन्त।
मन ही मन सोचें भरत, कैसे हो भव अन्त ॥
प्रस्तुत है महाकवि रत्नाकर वर्णी जी द्वारा रचित… भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में ईक्ष्वाकु वंश में जन्में, अन्तिम कुलकर मानवश्रेष्ठ महाराजा नाभिराय के प्रपौत्र एवं वर्तमानकालीन प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र, श्रावकश्रेष्ठ, प्रथम षटखण्डाधिपति – चक्रवर्ती सम्राट भरत का वैभव… भरतेश वैभव।
चक्रवर्ती सम्राट भरत… जो जैनशासन के गौरव हैं, जिनके ही नाम पर आज इस देश का नाम भारत जाना जाता है, जिन्होंने सम्पूर्ण खण्ड-खण्ड पृथ्वी को एककर उसे अखण्ड साम्राज्य में परिवर्तित किया और भारत की पवित्र धरा पर धर्म और न्याय की स्थापना की। वे बाह्य जगत से उदासीन, तन-धन भोगों से विरक्त और जगतख्याति को त्याग आत्मख्याति के मार्ग पर उन्मुख थे। भरत चक्रवर्ती के जीवन का प्रत्येक अंग पुरुषार्थ प्रेमी भव्य आत्माओं को प्रेरणादायी है, उनका ज्ञान, विशुद्धि, धर्म तत्परता, वात्सल्य, दृढता एवं अन्य सभी गुण आदरणीय हैं, अनुकरणीय हैं।
ऐसे महान सम्राट श्री भरतेश की गौरव गाथा को इस आधुनिक युग में अद्भुत चित्रकला के माध्यम से प्रस्तुत करने का कार्य श्री कुन्दकुन्द-कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बई एवं गुरु कहान कला संग्रहालय, सोनगढ द्वारा किया गया है। इस महान कार्य में अपनी चित्रकौशलता से जिन्होंने सबको मनोनीत किया, ऐसे देश-विदेश में ख्यातिप्राप्त चित्रकार श्री विजय आचरेकर जी के भी हम सदा आभारी हैं, जिनके अथक परिश्रम से यह कार्य इतने सुन्दर और व्यवस्थित रूप से सभी के समक्ष प्रस्तुत हो पाया है।